प्रतिशोध की आग में जल रहे ऋषि विश्वामित्र का महर्षि वशिष्ठ की हत्या के लिए वशिष्ठाश्रम में जाना और अनदेखे-अचीन्हे रहने के लिए छिपकर वार्तालाप सुनने के प्रयास में (जब वशिष्ठजी द्वारा अरुंधती को विश्वामित्र की तपस्या के तेज की महिमा बताई जा रही थी) अपनी प्रशंसा सुनकर पश्चाताप में डूबकर वशिष्ठजी से क्षमा माँगना ऐतिहासिक दृष्टांत है।
'यहाँ क्षमा माँगने वाले विश्वामित्र और क्षमा करने वाले वशिष्ठ दोनों ही सशक्त, समर्थ और सबल हैं। विश्वामित्र प्रतिशोध की शक्ति रखते हैं, परंतु वशिष्ठ से क्षमा माँग लेते हैं। क्षमा माँगते ही विश्वामित्र का अहंकार गलता है और तत्क्षण वशिष्ठ कह उठते हैं, 'ब्रह्मर्षि विश्वामित्र! कैसे हैं आप?'
उल्लेखनीय है कि विश्वामित्र की प्रतिशोध-भावना और क्रोध के कारण ही वशिष्ठ ने उन्हें ब्रह्मर्षि का संबोधन नहीं दिया था, किंतु जब विश्वामित्र का प्रतिशोध पश्चाताप में बदल गया अर्थात वे क्षमाप्रार्थी हो गए तो वशिष्ठ ने उन्हें 'ब्रह्मर्षि' कहकर पुकारा।
उधर, वशिष्ठ भी प्रतिकार की क्षमता रखते हैं, परंतु विश्वामित्र को क्षमा कर देते हैं।
यदि न प्रणयेद्राजा दण्डं दण्ड्येष्वतन्द्रितः । शूले मत्स्यानिवापक्ष्यन्दुर्बलान्बलवत्तराः ॥२०॥ (यदि न प्रणयेत् राजा दण्डम् दण्ड्येषु अतन्द्रितः शूले मत्स्यान् इव अपक्ष्यन् दुर्बलान् बलवत्तराः ।) भावार्थः यदि राजा दण्डित किए जाने योग्य दुर्जनों के ऊपर दण्ड का प्रयोग नहीं करता है, तो बलशाली व्यक्ति दुर्बल लोगों को वैसे ही पकाऐंगे जैसे शूल अथवा सींक की मदद से मछली पकाई जाती है ।
कहने का तात्पर्य है कि समुचित सजा का कार्यान्वयन न होने पर बलहीन लोगों पर बलशाली जन अत्याचार करेंगे । ध्यान रहे कि अत्याचार करने वाले शक्तिशाली होते हैं; वे धनबल, बाहुबल, शासकीय पहुंच आदि के सहारे अपनी मर्जी से चलने वाले होते हैं, और निर्बलों को कच्चा चबा जाने की नीयत रखते हैं । आज के सामाजिक माहौल में ऐसा सब हो रहा है यह हम सभी देख रहे हैं । दण्डित होने का भय दुर्जनों को रोकता है । नीति कहती है कि राजा का कर्तव्य है कि अपराधी को दण्ड देने में उसे रियायत तथा विलंब नहीं करना चाहिए । दुर्भाग्य से अपने देश में दण्ड देने की प्रक्रिया कमोबेश निष्प्रभावी है, कम के कम रसूखदार लोग तो दण्डित हो ही नहीं रहे है, और उनका मनोबल चरम पर है ।
Saturday 4 June, 2011
मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
Friday 3 June, 2011
आर्थिक युद्ध में किसी राष्ट्र को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी मुद्रा को खोटा कर देना और किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना ।
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय। रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥
Tuesday 31 May, 2011
"बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है।" - अष्टावक्र